मंज़िल तक पहुँचा देता है यूँ ही कहीं मुड़ जाना भी
रहबर अपना बन जाता है रस्ता कोई अनजाना भी
आसानी से पँहुच न पाओगे इंसानी फ़ितरत तक
कमरे में कमरा होता है कमरे में तह़खाना भी
दिल बच्चे की सूरत है बेशक बिठलाना पलकों पर
ज़िद जो करे बेमानी कोई तो उसको समझाना भी
क्यों हँसते हो बंजारों पे घर आँगन बस्ती वालों
किसको बांध के रख पाया है कोई ठौर ठिकाना भी
जीवन की इस राह-गुजर में दोनों रंग ज़रूरी हैं
रस्सी-सा बल खाना भी और आँचल-सा लहराना भी
इक चौराहे के जैसा है जिसको जीवन कहते हैं
राहों-सा मिल जाना भी है राहों-सा बँट जाना भी
दरिया जैसा फैले रहना है अपना अंदाज़ मगर
वक़्त पड़े आता है हमको बूँदों में ढल जाना भी
जाने कैसे सुधरेगा ये हाल तुम्हारा हस्ती जी
कुछ तो चारागर भी नये हैं कुछ है रोग पुराना भी