हम जिनके लिये शम्अ की मानिंद जले थे
वो लोग तो सूरज की तरफ़ देख रहे थे
कुछ और सबक़ हम को ज़माने ने सिखाए
कुछ और सबक़ हमने किताबों में पढ़े थे
सरहद पे जो कटते तो कोई ग़म नहीं होता
है ग़म तो ये सर घर की लड़ाई में कटे थे
जब ख़ुद से मिला मैं तो सभी कर दिये सीधे
जितने भी वरक़ मेरी किताबों के मुड़े थे
सर पे जिन्हें रखा है बड़ी शान से तुमने
वे ताज मेरे घर के खिलौनों में पड़े थे
दिल को जो मेरे भाए थे अनमोल नगीने
वे और किसी की ही अँगूठी में जड़े थे