Thursday 4 August 2011

झूठ के बाज़ार में ऐसा नज़र आता है सच

ख़ुशनुमाई देखना ना क़द किसी का देखना
बात पेड़ों की कभी आये तो साया देखना

ख़ूबियाँ पीतल में भी ले आती है कारीगरी
जौहरी की आँख से हर एक गहना देखना

झूठ के बाज़ार में ऐसा नज़र आता है सच
पत्थरों के बाद जैसे कोई शीशा देखना

ज़िन्दगानी इस तरह है आजकल तेरे बग़ैर
फ़ासले से कोई मेला जैसे तन्हा देखना

देखना आसाँ हैं दुनिया का तमाशा साहबान
है बहुत मुश्किल मगर अपना तमाशा देखना

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