महल, अटारी, बाग़, बग़ीचा, मेला, हाट घुमा कर देख
फिर भी बच्चा ना बहले तो, लोरी एक सुना कर देख
छू हो जाती है धज सारी या कुछ बाक़ी रहता है
डिगरी, पदवी, ओहदों से तू अपना नाम हटा कर देख
चार दिनों में भर जायेगा दिल इन मेलों-खेलों से
चाह रहेगी सदा नवेली मन को रोग लगा कर देख
जंतर-मंतर जादू-टोने झाड़-फूँक, डोरे-ताबीज़
छोड़ अधूरे-आधे नुस्ख़े ग़म को गीत बना कर देख
शब के बाद सवेरे जैसा बचता ही जाऊँगा मैं
चाहे जितनी बार मुझे तू ख़ुद से जोड़ घटा कर देख
उलझन और गिरह तो हस्ती हर धागे की क़िस्मत है
आज नहीं तो कल उलझेगी जीवन-डोर बचाकर देख
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