Tuesday 19 July 2011

माँ के जैसा है ये दिया कुछ-कुछ

उससे मिल आए हो लगा कुछ-कुछ
आज ख़ुद से हो तुम जुदा कुछ-कुछ

दिल किसी का दुखा दिया मैंने
ज़िन्दगी मुझसे है खफ़ा कुछ-कुछ

मेरी फ़ितरत में सच रहा शामिल
अपना दुश्मन ही मैं रहा कुछ-कुछ

आग पीकर भी रौशनी देना
माँ के जैसा है ये दिया कुछ-कुछ

उलझे धागों से हमने समझा है
ज़िन्दगानी का फ़लसफ़ा कुछ-कुछ

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