Friday 29 July 2011

कुछ और सबक़ हमने किताबों में पढ़े थे


हम जिनके लिये शम्अ की मानिंद जले थे

वो लोग तो सूरज की तरफ़ देख रहे थे



कुछ और सबक़ हम को ज़माने ने सिखाए

कुछ और सबक़ हमने किताबों में पढ़े थे



सरहद पे जो कटते तो कोई ग़म नहीं होता

है ग़म तो ये सर घर की लड़ाई में कटे थे



जब ख़ुद से मिला मैं तो सभी कर दिये सीधे

जितने भी वरक़ मेरी किताबों के मुड़े थे



सर पे जिन्हें रखा है बड़ी शान से तुमने

वे ताज मेरे घर के खिलौनों में  पड़े थे



दिल को जो मेरे भाए थे अनमोल नगीने

वे और किसी की ही अँगूठी में जड़े थे

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